Ashwatthama कौन थे, अश्वत्थामा कहां है, मणि का रहस्य, वरदान
क्या आप भी अश्वत्थामा से जुड़े रहस्यों की जानकारी ढूंड रहे हैं? अगर हाँ तो आप सही जगह हैं. आज हम आपको इस Article की मदद से बताएँगे Ashwatthama कौन थे की पूरी जानकारी.

इसके साथ ही हम आपको अश्वत्थामा से जुड़े और भी सवालों के जवाब देंगे. जैसे की: अश्वत्थामा को श्री कृष्ण में क्यों श्राप दिया था, अश्वत्थामा की मणि का क्या रहस्य है, अश्वत्थामा ने क्या किया था, अश्वत्थामा अभी भी ज़िंदा है या नहीं इत्यादि की पूरी जानकारी में जानेंगे.
तो चलिए शुरू करते हैं Article पढ़ने से Ashwathama Kon The और Ashwathama Kaha Hai के बारे में पढ़ने से…..
Contents
Ashwatthama Kon The
पूरे भारतवर्ष के सबसे नामी हिंदी साहित्यों में से एक का काम नाम है महाभारत. अश्वत्थामा इसी साहित्य के एक पत्र हैं. माना जाता है की यह साहित्य एक सच्ची घटना आधारित है इस लिए इसके पात्र के कुछ अंश आज भी ज़िंदा हैं. इसके अलावा इस साहित्य के अनुसार अश्वत्थामा एक महान योद्धा थे, जो गुरु द्रोणाचर्या के पुत्र थे.
ऐसा कहा जाता है की अश्वत्थामा सात चिरंजीवीयों मे से एक हैं, इन्हे भगवान शिवा ने अमर रहने का वरदान दिया था. अश्वत्थामा को जन्म से ही अमर होने का वरदान प्राप्त है, इन्हे वरदान के साथ साथ एक रत्न से भी नवाज़ा गया जो की इनके माथे पर है, इससे इन्हे कभी भी किसी मानव या किसी भी प्रकार का जीवन यापन करने के लिए परेशानी नही होगी.
इन्हे भी अपने वरदान पर बहुत अहंकार था, परंतु जैसा की हम जानते हैं कि अहंकार किसी का भी क्यों न हो ज़्यादा दिन नही टिकता. उसी तरह, महाभारत युद्धा के समय इनका यह वरदान अभिशाप मे बदल गया.
जब श्री कृशन ने इन्हे यह श्राप दिया की तुम अमर तो रहोगे लेकिन तुम्हारी ज़िंदगी मे दुख और दर्द के अलावा कुछ नही होगा. इसके साथ ही तुम प्रतिदिन मौत के लिए तड़पोगे.
Ashwatthama Ko Krishna Ne Kyo Shraap Diya Tha
जब पांडव और कौरव द्रोणाचर्य के गुरुकुल में शिक्षा लेने गए थे, तब अश्वत्थामा की दोस्ती कौरवों के बड़े भाई दुर्योधन से हुई थी. आगे चलकर दुर्योधन जब हस्तिनापुर का राजा बनता है और अश्वत्थामा को उनकी मन चाही शक्तियों से नवाज़ता है. तब वो बहुत घनिष्ठ मित्र बन जाते हैं.
इसके बाद जब महाभारत का युद्ध हुआ तो अश्वत्थामा ने भी इस युद्ध में सबसे ज़्यादा लोगों को मारा. युद्धा के दौरान जब द्रोणाचार्य का देहांत हुआ, तो अश्वत्थामा बदले के भाव में आकर पांडवों को मारने का निर्णय लेता है. इसके लिए वो रात के समय में धोखे से उपपांडवों को मार पाता है. इसके साथ थी भागते वक़्त उसे श्री कृष्ण और बाकी पांडव देख लेते हैं.
तब अश्वत्थामा, अर्जुन का सामना करने के परिणाम से डरकर भ्रह्मास्त्र का प्रयोग करता है जिससे बचने के लिए अर्जुन अभी अपने भ्रह्मास्त्र को उसकी तरफ छोड़ देते हैं. इसके बाद जब दो ब्रह्मस्त्र एक साथ टकराते हैं तो सृष्टि के विनाश के संयोग बन जाते हैं.
ऐसे में फिर बाकी भगवान उन्हें बोलते हैं की वे उनके ब्रह्मास्त्र वापस ले लें. इसके बाद अर्जुन को पूरा ज्ञान होने की वजह से वो तो आपका ब्रह्मास्त्र ले लेते हैं पर अश्वत्थामा को यह ज्ञान नहीं रहता तो उन्हें किसी और जगह जहाँ किसी का नुक्सान न हो वहाँ पर ये ब्रह्मास्त्र भेजने की राइ दी जाती है.
चुकि अश्वत्थामा क्रोध में लाल थे तो वह अपना ब्रह्मास्त्र गांधारी के पेट में पल रहे शिशु की तरफ उनके अस्त्र को भेज देते है. इससे उस शिशु की मृत्यु हो जाती है. जब ये बात श्रीकृष्ण को पता चलती है तब वो क्रोध्ति होकर उनके सिर की मणि निकाल लेते हैं एवं उन्हें तकलीफ में भटकते रहने का श्राप देते हैं.
Ashwatthama Ki Mani Ka Kya Rahasya Hai
अश्वत्थामा के माथे का रत्न उन्हे बलशाली बनाता था. उस पत्थर के होते हुए वो कई वर्षों तक बिना खाए – पिए स्वस्थ रह सकते है. उन्हे भूखे रहने की सिद्धि प्राप्त थी. वह एक वेदिक ब्राहमन और शिवा के पुजारी थे. उनका पत्थर उन्हे Healthy और बिना थकान के ज़िंदगी जीने की शक्ति प्रदान करता है.
जब श्री कृष्णा ने उन्हे श्राप दिया तो उस समय उनका यह पत्थर निकाल लिया गया था. कहते हैं आज भी वह मणि अश्वत्थामा के पास है. इसके साथ ही अगर कोई उस मणि को प्राप्त कर ले तो वो अमर हो सकता है.
अश्वत्थामा कहां है
माना जाता है की अश्वत्थामा मध्य प्रदेश के एक किले में आज भी सुबह भगवान शिव की पूजा करने आते हैं. वो नर्मदा नदी की परिक्रमा करने वाले बहुत से लोगों/ संतों ने उन्हें शूल्पनेश्वर वन्यजीव अभयारण्य में देखा है जो पूरे मध्य प्रदेश और गुजरात में फैला हुआ है.
Ashwatthama Ko Amar Rehne Ka Vardan Kyu Mila
गुरु द्रोण ने अनेक सालो तक भगवान शिव की तपस्या की उस तपस्या से खुश होकर शिव जी ने उन्हे दर्शन दिए और इच्छा बताने के कहा, तब द्रोण ने अश्वत्थामा को एक चीरजीवी के रूप मे माँगा. तब शिव जी ने उन्हे वरदान दिया की पुत्र चीरजीवी एवं अमर होगा और कभी किसी चीज़ की कमी नही आएगी जब तक की माथे पर वह पत्थर है. तो एसे यह है उनके वरदान का रहस्य.
अश्वत्थामा को कोई भी हथियार नही मार सकता था, करण के जैसे उन्हे भी वरदान था , कारण को वरदान भगवान सूर्या से प्राप्ता था, उनके पास कवच था जिसके रहते कोई भी उन्हे नुकसान नही पहुचा सकता, परन्तु अहंकार विनाश का प्रथम रास्ता होता है, युद्धक्षेत्र मे कर्ण का भी अन्हकर टूट गया उसे भी कवच उतार कर देना पड़ा.
नहीं, अश्वत्थामा अब ज़िंदा नहीं है. इनकी जीवन आयु 3,000 साल तक की ही थी.
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